क्या एक महिला और उसका बच्चा सिर्फ इसलिए बेसहारा हैं क्योंकि उन्होंने प्यार से घर बसाने की कोशिश की?

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प्रयागराज.
थाना लालपुर क्षेत्र की रहने वाली शालिनी मिश्रा (उम्र 28 वर्ष) आज अपने 10 वर्षीय बेटे के साथ न्याय की आस में हैं। तीन साल पहले उन्होंने प्रेम विवाह किया था हरिशंकर पांडे से, जोकि उनकी दूसरी शादी थी। शादी पूरी सामाजिक और कानूनी प्रक्रिया से की गई थी, लेकिन हरिशंकर द्वारा जरूरी दस्तावेज कोर्ट में जमा न करने के कारण अब यह रिश्ता अधर में लटका हुआ है।

शालिनी का आरोप है कि अब न सिर्फ हरिशंकर पांडे बल्कि उनके पूरे परिवार ने उन्हें और उनके बच्चे को अपनाने से इनकार कर दिया है। बल्कि, शारीरिक हिंसा तक की गई है।

पति और ससुरालवालों पर मारपीट का आरोप

शालिनी मिश्रा का साफ आरोप है कि हरिशंकर पांडे और उनके परिवार के लोगों ने उनके साथ कई बार मारपीट और झगड़ा किया। यह हिंसा सिर्फ उनके साथ नहीं, बल्कि उनके मासूम बेटे के साथ भी हुई। उन्होंने बताया कि ससुराल में उन्हें किसी तरह की इज़्ज़त या सम्मान नहीं दिया गया, बल्कि कई बार मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया।

परिवार के जिन सदस्यों पर शालिनी ने आरोप लगाए हैं, उनमें शामिल हैं:

रवि शंकर पांडे

विजय शंकर पांडे

शिव शंकर पांडे

पिता: रामसनेही उर्फ मन्ना पांडे

हरिशंकर की बहनें: विमला पांडे और निशा मिश्रा (हालांकि दोनों की शादी हो चुकी है, फिर भी शालिनी के अनुसार वे लगातार घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करती रहीं और उनके खिलाफ माहौल बनाती रहीं।)

“मुझे और मेरे बेटे को घर में नहीं रहने दिया जा रहा”

शालिनी बताती हैं कि हरिशंकर के परिवार ने खुले शब्दों में कह दिया कि वे उनके बेटे को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं और न ही उसका खर्चा उठाएंगे। यहां तक कि अब शालिनी के अपने खर्चे भी हरिशंकर ने देने से मना कर दिया है।

शालिनी अब अपने पहले पति के घर में रह रही हैं, जहां उन्हें और उनके बेटे को सम्मान और सुरक्षा मिल रही है। वह कहती हैं, “हम पहले अलग कमरे में रहते थे, लेकिन अब हमें अपने पहले पति के घर वालों ने अपनाया है और बहुत प्यार से रखा है।”—

क्या प्रेम विवाह करने की सज़ा आज भी एक महिला को यूं ही भुगतनी पड़ती है?

क्या एक महिला को उसकी दूसरी शादी और एक बच्चे की मां होने की वजह से समाज और कानून से कमतर न्याय मिलेगा?

जब शादी सामाजिक और क़ानूनी रूप से हुई थी, तो क्या उसका अधूरा दस्तावेज़ीकरण एक बहाना बन सकता है अत्याचार का?

और अगर एक महिला अपने पहले पति के घर में वापस शरण लेती है, तो क्या यह समाज के लिए एक आईना नहीं है?

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