तीन पीढ़ियों से काबिज आदिवासी परिवारों की जमीन पर वन विभाग की सख्ती, 15 एकड़ खेत उजाड़ने पर मजबूर, बच्चों-बुजुर्गों का सहारा छिना

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सरगुजा।
जंगल से सटे गांवों में रह रहे आदिवासी परिवारों पर अब उनके ही पुरखों की जमीन से बेदखली का खतरा मंडरा रहा है। जिले के सनपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत सेबी के चार परिवार को जिसमें
छोटेलाल यादव पुत्र जगमोहन यादव, मां नंदरानी यादव, पत्नी का पुष्पा यादव और दो बच्चों और तीन भाइयों के परिवार को वन विभाग की सख्ती के चलते अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ रहा है। पीढ़ी दर पीढ़ी खेती कर रहीं इन गरीब परिवारों की करीब 15 एकड़ भूमि पर वन विभाग ने कार्रवाई शुरू कर दी है।

पीड़ितों ने बताया कि उनके पूर्वजों के समय से यह जमीन उनकी जीविका का मुख्य साधन रही है। इसी जमीन से अनाज पैदा होता था, इसी से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और बुजुर्गों का इलाज चलता था। बीते कई सालों से यह लोग पट्टे और जमीन के वैध दस्तावेज के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं।

ग्राम सभा भी कर चुकी है सिफारिश
ग्रामीणों ने 2019 में ग्राम सभा की बैठक में यह प्रस्ताव पारित कराया था कि यह भूमि उनके कब्जे में है और लंबे समय से वह इसमें खेती करते आ रहे हैं। ग्राम पंचायत सेबी ने भी इसकी अनुशंसा की थी, लेकिन वन विभाग ने अब तक किसी प्रकार की राहत नहीं दी। उल्टा अब यह चेतावनी दी गई है कि जमीन खाली नहीं की तो बलपूर्वक कार्रवाई की जाएगी।

कहां जाएं ये परिवार?
पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं और खेती के अलावा किसी अन्य रोजगार में दक्ष भी नहीं। अगर यह जमीन छिन गई तो उनके सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इसी जमीन की उपज पर निर्भर हैं।

वन विभाग की बेरुखी से टूटा सब्र
परिवारों ने आरोप लगाया कि वन विभाग उनके हक की बात नहीं सुनता। अधिकारी मिलने पर या तो टाल देते हैं या धमकी देते हैं कि जमीन छोड़ो नहीं तो कार्रवाई होगी। एक महिला ने कहा – “हम तो अपने जंगल-पहाड़ को बचाते आए हैं। जानवरों की भी रक्षा की, मगर अब हमारे ही बच्चों को भूखा मरने को कहा जा रहा है। क्या यही न्याय है?”

सरकार से लगाई इंसाफ की गुहार
पीड़ितों ने प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से अपील की है कि उनकी पुश्तैनी जमीन को बचाया जाए। आदिवासी अधिकारों की रक्षा के दावे तो खूब होते हैं, मगर जब जमीन बचाने की बात आती है तो कोई सुनवाई नहीं होती।

ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कोई समाधान नहीं निकला तो वे सामूहिक धरना प्रदर्शन करेंगे और जरूरत पड़ी तो भूख हड़ताल पर भी बैठ जाएंगे।

(रिपोर्टर – विशेष संवाददाता, सरगुजा)

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