विवादों में घिरे संत अनिरुद्धाचार्य और श्री प्रेमानंद जी महाराज: बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने का आरोप

Date:

हाल ही में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अनिरुद्धाचार्य जी महाराज और श्री प्रेमानंद जी महाराज के एक कथन को लेकर सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों पर जबरदस्त विवाद छिड़ गया है। वायरल हो रहे एक वीडियो क्लिप में दोनों संतों द्वारा कथित तौर पर महिलाओं को लेकर की गई टिप्पणी पर कई लोगों ने आपत्ति जताई है, जबकि संतों के अनुयायी और समर्थक इसे गलत संदर्भ में पेश किया गया बयान बता रहे हैं।

विवाद की जड़ में है एक कथन, जिसमें कहा गया —
“आज की कुछ स्त्रियाँ चार जगह मुँह मारती हैं…”।

इस बयान पर कई लोग भड़क उठे और इसे संपूर्ण नारी समाज का अपमान बताने लगे। हालांकि, संतों के समर्थकों का कहना है कि यह कथन सभी महिलाओं पर नहीं, बल्कि कुछ भटकी हुई प्रवृत्ति की महिलाओं के संदर्भ में था, और इसी प्रकार के पुरुषों पर भी तीखी टिप्पणी की गई थी।

दोनों संतों के कथनों का मूल भाव क्या था?

संत अनिरुद्धाचार्य जी और श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों में बार-बार यह बात कही जाती रही है कि समाज में नैतिकता, चरित्र और पारिवारिक मूल्यों का पतन हो रहा है। वे इस गिरावट के लिए स्त्रियों और पुरुषों दोनों की असंयमित जीवनशैली को जिम्मेदार मानते हैं। एक प्रवचन में उन्होंने स्पष्ट कहा:

“जो पुरुष अपनी पत्नी को धोखा देगा, या किसी अन्य स्त्री से अवैध संबंध रखेगा, वह भी चरित्रहीन कहलाएगा। और यही बात स्त्रियों पर भी लागू होती है।”

इस कथन का आशय था कि चरित्रहीनता का लिंग से कोई संबंध नहीं है – जो भी अपने दांपत्य धर्म से भटकता है, वह दोषी है।

संतों के समर्थकों की प्रतिक्रिया

फिरोजाबाद जिले के गांव रुधऊ, थाना नारखी, पोस्ट नगला बीच निवासी आचार्य गौरव (उम्र 33 वर्ष), पिता श्री केशव देव शास्त्री, ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“संत समाज को आइना दिखाने का कार्य कर रहा है। आज माता-पिता अपने बच्चों से कुछ कहने से डरते हैं, ऐसे में अगर संत समाज इन मुद्दों को मंच से उठा रहा है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए, ना कि आलोचना। उन्होंने जो भी कहा है, वह समाज के एक वर्ग के बारे में है, सभी स्त्रियों के बारे में नहीं।”

गौरव का मानना है कि संतों के बयानों को राजनीतिक और वैचारिक कारणों से जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है ताकि उन्हें बदनाम किया जा सके।

सोशल मीडिया पर दो धाराएँ

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर दो धाराएँ बन चुकी हैं।

एक पक्ष कहता है कि सार्वजनिक मंच से इस प्रकार की भाषा का प्रयोग अपमानजनक और अनुचित है, भले ही आशय कुछ भी रहा हो।

वहीं, दूसरा पक्ष मानता है कि संतों ने समाज के वर्तमान नैतिक संकट की ओर ध्यान दिलाया है, और उनका उद्देश्य किसी को अपमानित करना नहीं, बल्कि सुधार की ओर प्रेरित करना है।

यह स्पष्ट है कि बयान के पीछे भावना समाज में गिरते नैतिक मूल्यों के प्रति चिंता है। परंतु प्रस्तुति का तरीका और संदर्भों की स्पष्टता बेहद जरूरी होती है, खासकर जब आप लाखों लोगों तक अपनी बात पहुँचा रहे हों। ऐसे में ज़रूरत है कि संत समाज भी अपनी भाषा और प्रस्तुति में संयम बरते, और सामाजिक मीडिया व अन्य माध्यम भी बिना संदर्भ के किसी भी बयान को सनसनीखेज़ रूप न दें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

जमीन विवाद में चाचा के बेटे पर मारपीट व जान से मारने की धमकी का आरोप

शाजापुर (मध्यप्रदेश), 13 अक्टूबर 2025: ग्राम निशाना, थाना अकोदिया निवासी...